<title>॥ संत चालिसा ॥

Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


||संत चालिसा |



श्रीगणेशाय नमः ।
जय जय जय गणपति गणराजो।।
मंगलभरण करण शुभकाजो।।१।।
जय जय जय सरस्वतिमाता।
ज्ञान की भण्डार खोले विद्या की दाता।।२।।
जय श्री स्वामी समर्था तू ही सुखदाता।
पूर्ण हो दत्तावतार होवे समृद्धी की माता।।३।।
कुल का संभाल करे कुलदेवसहित कुलमाता।
संकट हरो बालक की जय संकट त्राता।।४।।
जनम देवे बालक को तू ही जन्मदाता।
सत्य का पाठ पढ़ावे धन्य तू ही मातापिता।।५।।
संतो की महिमा सबसे न्यारी।
प्रकाश देवे भगत को ये अवतारी।।६।।
दुःख दारिद्र अति भयाण घेरो।
अपनी भक्ति से दुर्भाग्य को मारो।।७॥
निवृत्ति ज्ञानेइवर मुक्ताई सोपान होवे।
वेदसमान चारो इस जगत को सुख देवे ।। 1८ ॥
जैसे गीताज्ञान करे सब की भलाई।
वैसे ज्ञानदेव ने ज्ञानेशवरी को जान दिलाई।।९॥
गहनीनाथ निवृत्ति को पाठ पढ़ावे।
त्रैयंबक में सहस्र ज्ञानदिप जलावे।।१०॥
ज्ञानी होके ज्ञानेश्बर ने दीप जलाया।
मूढ़ी जनों को सुख ही सुख दिलाया।।११॥॥
गलत परंपरा को सही राह पे लाया।
चमत्कार करके नर भैंस से वेद पढ़ाया।।१२।।
योग बलसे अपने पीठ पर रोटी पकावे।
मातापिता के मरण को सार्थक करावे।।१३।।
कोरे योगाधिपती चांगदेव को पाठ पढ़ाया।
ब्रह्मकला मुक्ताई ने उत्तम शिष्य बनाया।।१४६ ॥
सोपानकाका ने हरिनाम का किया जय जयकार।
ज्ञानदादा के संग जीवन को दिया आकार ॥१५॥॥
जय जय तुकाराम जय हरिनाम बोले।
सदा ही भक्तिरस के मस्ती मे डोले।।१ ६।।
लिखाण करके गाथा भक्तीरस में डुबावे।
अहंभावी नास्तिक को सत्‌ का मार्ग दिखावे।।१७ ॥
इंद्राणी के तट पे हरिनाम घुमे।
सुन के सब वारकरी अपनी मस्ती में झुमें।।१८।।
एकनाथ के रोम रोम में भागवत धर्म समाया।
ज्ञान की चौटी पे विजय पताका फहराया।।१ १।।।
भूतदया की सीख नामदेव बाबा ने सिखाई।
पत्थर के मुरत को भक्ती के रस से झुलाई।।२०॥॥
संत चोखामेला धरे अखंड हरिनाम ध्यास
मरणपश्चात हड्डी बोले जय जय विठू माउली ख़ास
धर्मजाती को तोडके खोले किवार।
विठुनाम से संजीवन करे ग्यान की दीवार।।२२॥॥
संत भानुदास सदा रहे विदुनाम में दंग।
ज्ञान का अमृत पिलाने विठुमाऊली रहे संग।।२३॥॥
मिट्टी को देके आकार घट बनावे मोहक।
विठुनाम से घुमाके चक्र गोरोबा बने भावक|।२४ ॥
जगत को भूतदया की सीख देवे।
ऐसी संत बहिणाबाई विष्णुनाम का मधुररस लेवे।।२५॥॥
सम्राट को दिखाया अमोल भक्ती का पंथ।
विठुमाऊली का जय जयकार करे भव्य सेनासंत।।२६॥॥
अपनी कला से सुंदर बनावे विठुमाऊली का दरबार।
हरिनाम का रस पिलाबे नरहरि सोनार बारंबार।।२७।।
ऐसे होवे संत एक महान।
भावरूप पिलाके होवे भक्ति का जहान।।२८।॥
विठुमाऊली तू ही मायबाप यही भगत की मन्नत।
भक्त पुंडलिक कि आग्या सबारे के बनावे उसे उन्नत | २९ ॥
जय जय विठुमाऊली पंढरपूर के वासी।
संतों को सुख देवे सच्चा बैकुंठ निवासी।।३०।।
दीन दुखारु मैं तुम्हारे पाँव पलोटत।
आठों सिद्धि टाके चरणो में लोटत।।३१॥
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी ।
संतों को सुख देवे जय हितकारी।।३२।।
जय हो संतजन तुम्हारी महिमा अपंरपार।
कठिनाई में साथ देवे तू ही सच्च्या आधार ॥३३॥
नामस्मरण की बुटी इस जगत को दिखावे।
मायारूपी सागर को जल्द से जल्द तैरावे।।३४ ॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे सुंदर संतों होवे जगदू उद्घारी।।३५॥|
आशीर्वाद तुम्हारा बहुत हितकारी।
जपय जनम साथ देवे तू ही उपकारी।।३६॥
तीनोंलोक में आप विराजे।
सब देवो संग संत पुजावे।।३७।।
पढ़ के संतचालिसा वर देई महान।
विठुमाऊली की आशीर्वाद से बनावे भाग्यवान।।३८॥|
ऐसे हुए विश्व में एक से एक संत।
खुश करके भगत को चलावे हरि के पंथ।।३९।।
माया में डुबाके तैरावे समाज समंदर।
हरिनाम का जाप करके बंधन करावे दिल के अंदर।।४०।|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
।।हरि ॐ तत्‌ सतू।।


॥ श्री गुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||

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