<title>॥ श्राद्धफल्प--पितृगाथा-कीर्तन मत्स्य पुराण ॥

Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


||श्राद्धफल्प--पितृगाथा-कीर्तन - मत्स्य पुराण |



श्रीगणेशाय नमः ।

मनुमत्स्यसंवादे पितृगाथावर्णनम्।


मत्स्य उवाच।
एतद्वंशभवा विप्राः श्राद्धे भोज्याः प्रयत्नतः।
पितॄणां वल्लभं यस्मादेषु श्राद्धं नरेश्वर! ।। २०४.१ ।।

अतः परं प्रवक्ष्यामि पितृभिर्याः प्रकीर्तिताः।
गाथाः पार्थिवशार्दूल! कामयद्भिः पुरे स्वके ।। २०४.२ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं यो नो दद्याज्जलाञ्जलिम्।
नदीषु बहुतो यासु शीतलासु विशेषतः ।। २०४.३ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं यः श्राद्धं नित्यमाचरेत्।
पयोमूलफलैर्भक्ष्ये स्तिलतोयेन वा पुनः ।। २०४.४ ।।

अपि स्यात्सकुलेऽस्माकं योनो दद्यात्त्रयोदशीम्।
पायसं मधुसर्पिभ्यां वर्षासु च मघासु च ।। २०४.५ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं खड्गमांसेन यः सकृत्।
श्राद्धं कुर्यात्प्रयत्नेन कालशाकेन वा पुनः ।। २०४.६ ।।

कालशाकं महाशाकं मधु मुन्यन्नमेव च।
विषाणवर्जा ये खड्गा आसूर्यं तदशीमहि ।। २०४.७ ।।

गयायां दर्शने राहोः खड्गमांसेन योगिनाम्।
भोजयेत्कः कुलेऽस्माकं च्छायायां कुञ्जरस्य च ।। २०४.८ ।।

आकल्पकालिकी तृप्तिस्तेनास्माकं भविष्यति।
दाता सर्वेषु लोकेषु कामचारो भविष्यति ।। २०४.९ ।।

आभूतसंप्लवं कालं नात्र कार्या विचारणा।
यदेतत्पञ्चकं तस्मादेकेनापि च यः सदा ।। २०४.१० ।।

तृप्तिं प्राप्स्याम चानन्तां किं पुनः सर्वसम्पदा।
अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं दद्यात् कृष्णाजिनञ्च यः ।। २०४.११ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं कश्चित् पुरुषसत्तमः।
प्रसूयमानां यो धेनुं दद्यात् ब्राह्मणपुङ्गवे ।। २०४.१२ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं वृषभं यः समुत्सृजेत्।
सर्ववर्णविशेषेण शुक्लनीलं वृषन्तथा ।। २०४.१३ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं यः कुर्यात् श्रद्धयान्वितः।
सुवर्णदानं गोदानं पृथिवीदानमेव च ।। २०४.१४ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं कश्चित् पुरुषसत्तमः।
कूपारामतडागानां वापीनां यश्च कारकः ।। २०४.१५ ।।

अपि स्यात्स कुलेऽस्माकं सर्वभावेन यो हरिम्।
प्रयायाच्छरणं विष्णुं देवेशं मधुसूदनम् ।। २०४.१६ ।।

अपिनः सकुले भूयात् कश्चिद्विद्वान् विचक्षणः।
धर्मशास्त्राणि यो दद्याद् विधिना विदुषामपि ।। २०४.१७ ।।

एतावदुक्तं तव भूमिपाल! श्राद्धस्य कल्पं मुनिसम्प्रदिष्टम्।
पापापहं पुण्यविवर्द्धनञ्च लोकेषु मुख्यत्वकरन्तथैव ।। २०४.१८ ।।

इत्येतां पितृगाथां तु श्राद्धकाले तु यः पितृन्।
श्रावयेत्तस्य पितरो लभन्ते दत्तमक्षयम्॥ २०४.१९॥

इति श्रीमत्स्ये महापुराणे पितृगाथाकीर्तनं नाम चतुरधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥ २०४॥

हिंदी अनुवाद
श्राद्धफल्प--पितृगाथा-कीर्तन
मत्स्यभगवानने कहा--नरेश्वर ! इन धर्मके वंशमें
उत्पन्न हुए विप्रोंको श्राद्धमें प्रयत्नपूर्वक भोजन कराना
चाहिये; क्योंकि इन ब्राह्मणोंके सम्बन्धसे किया हुआ
श्राद्ध पितरोंको अतिशय प्रिय है। राजसिंह ! इसके बाद
अब मैं उस गाथाका वर्णन कर रहा हूँ जिसका अपने
पुरमें स्थित कामना करनेवाले पितरोंने कथन किया था।
क्या हमलोगोंके वंशमें कोई ऐसा व्यक्ति जन्म लेगा जो
अधिक एवं शीतल जलवाली नदियोंमें जाकर हमलोगोंको
जलांजलि देगा? क्या हमारे कुलमें कोई ऐसा व्यक्ति
जन्म लेगा जो दूध, मूल, फल और खाद्य सामग्रियोंसे
या तिलसहित जलसे नित्य श्राद्ध करेगा? क्या हमारे
वंशमें कोई ऐसा व्यक्ति जन्म लेगा जो वर्षा-ऋतुके
मघानक्षत्रकी त्रयोदशी तिथिको मधु और घीसे मिश्रित
दूधमें पका हुआ खाद्य पदार्थ हमें समर्पित करेगा? क्या
हमारे कुलमें कोई ऐसा व्यक्ति जन्म लेगा, जो कालशाकसे
श्राद्ध करेगा ? कालशाक, महाशाक, मधु और मुनिजनोंके
अनुकूल अन्नोंको हमलोग सूर्यास्तसे पूर्व ही ग्रहण करते
हैं। हमारे कुलमें उत्पन्न हुआ कौन व्यक्ति सूर्यग्रहणके
अवसरपर अर्थात् राहुके दर्शनकालतक गयातीर्थमें एवं
गजच्छायायोगमें योगियोंको फलके गूदेका भोजन करायेगा ?
इन खाद्य पदार्थोसे हमलोगोंको कल्प पर्यन्त तृप्ति बनी
रहती है और दाता प्रलयकाल पर्यन्त सभी लोकोंमें
स्वेच्छानुसार विचरण करता है--इसमें अन्यथा विचार
नहीं करना चाहिये। पूर्वकथित. इन पाँचोंमेंसे एकसे भी
हमलोग सदा अनन्त तृप्ति प्राप्त करते हैं, फिर सभीके
द्वारा करनेपर तो कहना ही क्या है? कया हमारे
वंशमें कोई ऐसा व्यक्ति उत्पन्न होगा, जो कृष्णमृगचर्मका
दान देगा ?॥ १--११॥

क्या हमारे वंशमें कोई ऐसा नरश्रेष्ठ पैदा होगा,
जो ब्राह्मणश्रेष्ठको व्याती हुई गायका दान देगा? क्या
हमारे वंशमें कोई ऐसा व्यक्ति जन्म लेगा, जो वृषभका
उत्सर्ग करेगा? वह वृष विशेषरूपसे सभी रज्भोंकी
अपेक्षा नील अथवा शुक्ल वर्णका होना चाहिये। क्या
हमलोगोंके कुलमें कोई ऐसा व्यक्ति उत्पन्न होगा, जो
श्रद्धासम्पन्न होकर सुवर्ण-दान, गो-दान और पृथ्वीदान
करेगा ? क्या हमारे वंशमें कोई ऐसा पुरुषश्रेष्ठ पैदा होगा,
जो कूप, बगीचा, सरोवर और बावलियोंका निर्माण
करायेगा ? क्या हमारे कुलमें कोई ऐसा व्यक्ति जन्म
ग्रहण करेगा जो सभी प्रकारसे मधु दैत्यके नाशक देवेश
भगवान्विष्णुकी शरण ग्रहण करेगा ? क्या हमारे कुलमें
कोई ऐसा प्रतिभाशाली विद्वान् होगा, जो विद्वानोंको
विधिपूर्वक धर्मशास्त्रकी पुस्तकोंका दान देगा? भूपाल!
मैंने इस प्रकार आपसे मुनियोंद्वारा कही गयी इस
श्राद्धकर्मकी विधिका वर्णन कर दिया। यह पापनाशिनी,
पुण्यको बढ़ानेवाली एवं संसारमें प्रमुखता प्रदान
करनेवाली है। जो श्राद्धके समय पितरोंको यह पितृगाथा
सुनाता है उसके पितर दिये गये पदार्थोको अक्षयरूपमें
प्राप्त करते हैं ॥१२--१९॥

इस प्रकार श्रीमत्स्यमहापुराणमें पितृगाथानुकीर्तन नामक दो सौ चारवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ॥ २०४॥


॥ श्री गुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||

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