॥श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री स्वामी समर्थाय नमः ॥
मणी रे मणी ,मणी पे फणा
फणे पे चढा हे जगत का गोना ।
मणी चले मणी के अंदर जो सुझावे जगत का बंदर ।
उलझे मणी सुलझे झाग जब चले तो सभी को दैवे धाक ॥
गुंडे पे मुंडा मुंडे पे सुंडा धारण करे गले में मणियों का झुंडा ।
धारण होके प्राण का करे जागर ,मुठी में लेके प्राण ,
परम ज्योती का करे आदर ॥
प्राण फुंक के करे कीवाड ,खोल के द्वार चौकी को करे प्रणाम ।
बांधलो मुठी को संभालो पाचों भूत ,आदेश कराके सभी को दैवे सुख ।
आनंद की कोठी,कोठी मे रहे मणीयों की गोटी,गोटी के सामने राखे
राई का दिया ,सिद्धी को करे दासी ,करे जगत को पिया ।
ज्ञानरूप में रहे शोधक ,ऐसे प्रेरक में रहे बोधक,
मणी हे शिव का प्यारा,सुंदर नयन का तारा ॥
उसमे समाई शिव कि शक्ती, धारण करने से भगत की जागे भक्ती ।
सुरज हे तपन अंगन का गोला ,करे चांद को अमृतमय थैला ॥
लैके गुरुरूपी चावी घुमाकर वरदरुपी पायंडा,
खोलकर अज्ञानरूपी ताला,सरकाले मूढरुपी कडी कोयंडा ।
देवे भावरूपी धक्का लैके भक्तीरूपी अरमान,
खोलकर भाग्यद्वार दिखावे ज्ञानरूपी फर्मान ।
उजाला कर के कोठी को,पार करे सातो आसमान
चमकाए जीव को दिखावे परब्रम्ह का ईमान
ऐसे शिव शक्ति दवा दुवा दैवे सहारा,
मंत्र जाप ने मोहित किया जग सारा ।
ऐसे स्वामी बरगत पेड़ नीचे मांडे ठान ,
दीन भगत को सिद्धी दैवे फुलावे ब्रम्हांड ।
जय हो स्वामी । जय हो स्वामी । जय हो स्वामी ।
अनंतकोटी ब्रह्मांड की लीला तुझमे समाई,
लेके छाता भगत के उपर छाया धरावे ,
अपनी कृपाछत्र से मन ही मन झुलावे ।
ॐ स्वामी । ॐ स्वामी । ॐ स्वामी । हरि ॐ तस्तत् ।।