अथ ध्यानम् ध्यायेत् शांतं प्रशांत कमल सुनयनं योगिराजं दयालुम् ।
देवम् मुद्रासनस्थं विमलतनुयुतं मंदहास्यं कृपालम् ॥
सदद्य यो ध्यात मात्रो हरति च सकलां पाप जालो धराशिनम् ।
भक्तानाम् ह्रद्निवासो जयति संवविददत केवलानंद कंदम् ॥
सतनम् आदेश । गुरु का आदेश ॥
आए गणेश बाबा मोरपे सवार ।
बुझावे दुनिया के दुःख ।
विघ्नन को करे आवर ।
पाचो आयतन करके सोलह शृंगार ।
साथ देके भगत को बनावे ओंकार ॥
गुरु स्वामीजी बैठे कछुए के पीठ।
करे संजीवन सारे जगत मे प्रज्ञापुर पीठ ॥
आवडी नावडी चाँद कि दो पत्नी हुए साकार ।
पूर्वा नक्षत्र मे हुताशनी लेवे आकार ।
हुताशनी दुःखाशनी भूतादी नाशिनी।
दारिद्रय हारिनी चिंताशनी विषाद नाशिनी ।
चण्डमुण्ड प्रनाशिनी सुर्य साकारीणी ।
चिंता शिरोमणी रुप मे हुई मण्डित ॥
जगत को देवे हेतु सुख ।
बनावे ज्ञान पण्डित ॥
अष्टमी से लेके पुनम तक होए उसका विस्तार ।
होलाष्टक नाम से पुजे दिन दुःखारु भक्तों का संसार ।
ॐ बं बोलके हुताशन करे सारे भगत के दुःख।
अष्टमी को अमृत संजीवन देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे सारे दारिद्रय ।
नवमी को अमृत संजीवन देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे सारे भक्तो के ऋण ।
दशमी को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे सारे भक्तो के उपर का अघोरी साया ।
एकादशी को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे रोगो कि बुरी माया ।
द्वादशी को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे भगत के उपर कि नजर कारणी आदिबाधा।
त्रयोदशी को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे सारे अन्य धर्मो की बुरी साया।
चतुर्दशी को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
ॐ बं बोलके हुताशन करे षटकर्म की माया ।
पोर्णिमा को अमृत संजीवनी देके राखे सुख ॥
हुताशन करके पचावे सारे भगत के मल ।
धुली को माथे पे लगाके होवे काया निर्मल॥
बाद में पाच दिन सदभाव हुए साकार।
अमृत की धारा बहाके जीवन को दे आकार ॥
आदेश करा के स्वामी भगत का झुलावे झुला ॥
जिससे शरणागत का जीवन समृद्धी से फुला।
अष्टभुजा दारिद्रयहारिणी पापनाशिनी पुण्यदायिनी ।
दुःखहारिणी अघोरनाशिनी सुरक्षादायिनी षटकर्मनाशिनि ।
विघ्नहर्ता सुखदायिनी कुंकूमधारिणी पिशाच्चनाशिनी।
लोकपालिनी नवजीवनदायिनी समृद्धिदायिनी।
परमसंतोष कारिणी नमो नमः ॥