जय जय जय गणपति गणराजू ,मंगल भरण करण शुभ काजू ॥१॥॥
जय जय जय सरस्वती माता, करे हंस सवारी विद्या की दाता॥२॥
जय जय जय ब्रह्मा विष्णु महेश्वर देवा ,बालक की रक्षा करके खिलावे मेवा॥३॥॥
सद्गुरु स्वामी होवे जगत की माई ,इस बालक को सुख ही सुख में झुलाई ॥४॥
साईं कुपा ने प्रेम की वर्षा कराइ ,बालकग्रह बाधा को दूर कराइ ॥५॥
जय-जय नरसिंह कृपाला, करो सदा भक्तन प्रतिपाला॥६॥
विष्णु के अवतार दयाला, महाकाल कालन को काला॥७॥
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा, अग्निदाह कियो प्रचंडा॥८॥
भक्त हेतु तुम लियो अवतारा, दुष्ट-दलन हरण महिभारा॥९॥
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा, देख दुष्ट-दल भये अचंभा॥१०॥
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा, ऊर्ध्व केश महादृष्ट विराजा॥११॥
रूप चतुर्भुज बदन विशाला, नख जिह्वा है अति विकराला॥१४॥
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी, कानन कुंडल की छवि न्यारी॥१२॥
ब्रह्मा, बिष्णु तुम्हें नित ध्यावे, इंद्र-महेश सदा मन लावे॥१३॥
जो नर धरो तुम्हरो ध्याना, ताको होय सदा कल्याना॥१४॥
नित्य जपे जो नाम तिहारा, दु:खग्रह-व्याधि हो निस्तारा॥१५॥
जो नरसिंह का जाप करे करावे, ताहि विपत्ति ग्रह बाधा सपने नहीं आवे॥१६॥
रोग बाधा ग्रसित जो ध्यावे कोई, ताकि काया कंचन होई॥१७॥
डाकिनी-शाकिनी प्रेत-बेताला, ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला॥१८॥
प्रेत-पिशाच सबे भय खाए, यम के दूत निकट नहीं आवे॥१९॥
सुमर नाम व्याधि सब भागे, रोग-शोक नजर कबहूं नहीं लागे॥२०॥
बालक को नजर बाधा हो कोई, सो नरसिंह का यह गुण गाई॥२१॥
हटे नजर होवे कल्याना, बचन सत्य साखी भगवाना॥२२॥
नमस्कार चामुंडा माता । तीनो लोक माई माई विख्याता ॥२३॥
क्रोधित होकर काली आई । जिसने बालक कि रक्षा कराई ॥ २४॥
पहले बालकग्रह को मारा । नजर दृष्टी को देवे करारा ॥ २५॥
अरबो दुख साथ मे आया ।बालक के रोदन को दूर भगाया ॥२६॥
तुमने प्रेम सिन्धु का रूप दिखाया । चुटकी में बालक को सुखी कराया ॥ २७॥
विकराल मुखी आँखे दिखलाई । जिसे देख बालक बाधा घबराई ॥ २८॥
पपियो का कर दिया निस्तरा । ग्रह नजर बाधा दोनो को मारा ॥ २९॥
सरस्वती मा तुम्हे पुकारा । पड़ा चामुंडा नाम तिहरा ॥ ३०॥
काली ख़टवांग घुसो से मारा । ब्रह्माड्ड ने फेकि जल धारा ॥ ३१॥
माहेश्वरी ने त्रिशूल चलाया । नजर बाधा को दूर भागाया ॥३२॥
ग्रह व्याधी सभी को खाया । हर दानव घायल घबराया ॥३३॥
रक्टतबीज माया फेलाई । शक्ति उसने नई दिखाई ॥ ३४॥
रक्त्त गिरा जब धरती उपर । नया डेतिए प्रगता था वही पर ॥३५ ॥
काली मा ने शूल घुमाया । मारा उसको लहू चूसाया ॥ ३६॥
भयानक से भयानक बाधा सतावे .वैसे माता बालक की रक्षा करावे ॥३७॥
वाज्ररपात संग सूल चलाया । अघोरी बाधा को दूर भगाया ॥ ३८॥
ललकारा फिर घुसा मारा । त्रिसूल की धार ने किया निस्तरा ॥ ३९॥
स्कन्द कार्तिक की शक्ति आई । दीन बालक कि रक्षा कराई॥ ४०॥
वीर हनुमान गदा चलावे देख के बाधा निकट न आवे॥४१॥
वीर भैरव सदा संग होवे ,क्षण भर में बालक को सुख दिलावे॥४२॥
लेके बभूत यह पाठ करावे ,मारके फुंकर रक्षा कवच दिलावे॥४३॥
रक्षा चालीसा का पाट माहान, बालक को सुख देके फुलावे जहाँ॥४४॥
॥ इति श्री बालक रक्षा चालीसा ॥