Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


||शनि अमृतवाणी ||



कांगितेन रोदेन तुम , तुम गणपति गणराज।
आदि पूजूँ विनायका , पूरण कीजौ काज॥।
महादेव को ध्यान धर , पूजूँ. माँ जगदम्ब।
तुम्हगा आशिष पायकर , मिट जावे सबदम्भ।।
हरि सिमरूँ ब्रह्मा सिमरूँ , सिमरू सीता राम।
कृपा मुझ पर कीजिये , हे राधावर श्याम।।
नभ यह हो साक्षी सदा , तन भी होय प्रमाण।
कुलदेवा विनती करूँ ,दीजौ इतना ज्ञान।॥।
भारद्वाज उत्पन्न भए , सदा श्रेष्ठ स्न्तान।
मुवानिया शाषण भए , निपट हो प्रवर थान।।
आशिष दे माँ झुनझुनी , पितु सुन सुनिया मीत।
मात-पिता के संग मुझे , मिले शनि की प्रीत।।
गगन बसे नवदेव जी , करिये कृपा खास।
बसो संग शनि हिरदय में , इतना हो आभास।।
पूर्वज जनको नमन करूँ , दीजो ये वरदान।
शनि नाम स्मरण रहे , जब तक घट में प्राण।।
गुरू चरणों में बैठकर , धरूँ शनि का ध्यान।
देव बड़े जग में शनि , बरनूँ सहित प्रमाण।।
अमृत वाणी देव की , करता हूँ आरम्भ।
मार्ग दर्शन कीजिए ,गौरी सुत हेरम्ब।।
जयति जयति सचिदानन्दाय , जयति हंसाय शांतिदाय।
जय जय सर्वदाय सुघोषाय , जयती सहस्र जप सुप्रियाय।
जयती सुलभाय सर्वज्ञाय , जयति जय सौम्य सदा तुष्टाय।
जय सर्वरूपा शक्तिधराय , जयति जय शान्ते विरोचनाय।
जयति जयति जय अघोररूपा , अधघहर अति बलवान अनूपा।
जयति जयति पुण्य फलदायक , नाशे अविद्या भक्त सहायक।
जयति जय आदित्य संभवाय , जयति जयति जय आदिदेवाय।
जय जय शततूणीर धारिणे , जयति उर्ध्व लोक सच्चारिणे।
जय जय गृहपतये घोराय , जयती छाया देवी सुताय।
जयाय जय प्रदाय जय जय , जय जयदाय डंभाय जय जय।
जयति ज्ञानमूर्तये स्वामी , तत्वज्ञाय' जय अन्तरयामी।
जयति जय धर्मरूपा धारी , पिप्पल महिमा अमित तुम्हारी।
जयति पिंगल प्राण कारिणे , प्राणरूपिणे कष्ट हारिणे।
जयति अनन्तो जय अन्नदाता , जयति महाभुज मंजुल भ्राता।
जयती भूतात्म भयहारी , जय भुवनेश्वर प्रियकारी।
जयति घनाय वैराग्य दाय , जय वाम नाम जय पावनाय।

दोहा-
तज विषय शनिदेव का , पूजन. करे त्रिकाल।
शनिदेव दाता करें, जीवन जीव निहाल॥।
शनि अनन्त महिमा अनन्त , अनन्त कलि का काल।
सर्व जन उद्धार हित, जाग्रत शनि तत्काल॥।

नमो नमो शनि महाशान्ताय , नमो सौम्य भानुज योगाय।
नमो नमो शनि वज्रदेहाय , नमो नमो शनि विश्ववन्द्याय।
नमो नमो शनि श्रुतिरूपाय , नमो नमो त्वम्‌ शनेश्चराय।
नमो शनैश्चर पुष्टिदाय , नमो रवि वंशज प्रदीपनाय।
नमो नमो शनि क्षिति भूषाय , नमो हविषे हिरण्य वर्णाय।
नमो नमो शनि महाकायाय , नमो मन्दार कुसुमप्रियाय।
नमो विष्णवे विश्व भावाय , नमो नमो शनि भक्तवत्सलाय।
नमो नमो शनी मुक्ति दाताय , ज्ञानी ज्ञान ज्योतिष ज्ञाताय।

दोहा-
नीलद्युति आभा तेरी, शंकर सदृश रूप।
नमन तुम्हें शनिदेव है, हे कालाग्नि स्वरूप॥
रक्षक हों शनिदेव जी, संकट. कटे समूल।
शनि संकीर्तन कीजिये, जीवन हो अनुकूल॥।

काननकनक जड़ित भिन्‍न मोती , राजे कटिबंध मोतिन ज्योति।
भाल मुकुट दीपे सम पारस , नीलकान्ति तन फैली तैजस।
कोटर सदृश नयन विशाला , गदा त्रिशूल ढाल कर भाला।
भाल तिलक सूर्याकृति सोहे , सब देवन के मन को मोहे।
चतुर भुजा बाजूबंद सुंदर , हस्त कंकण गल माल मनोहर।
अलकें घूंघर वाली प्यारी , तेजोमय मुख अति उजियारी।
अभय हस्त दीर्घ तनधारी ,योगी अमर धीर भयहारी।
चरण कमल रज गंध सुवासित , योगासन शनि सदा विराजित।

दोहा-
रवि छाया ने लाल का,नाम रखा शनिदेव।
करमन फल को देत हैं , कष्टों के हर लेव॥
रूप चतुर्भुज धारे हैं, निराकार साकार।
उनका बेडा पार हे, जिन्हें शनि से प्यार`॥

करें भानु मण्डल सज्चारण , जीवन व्याकुलता के कारण।
सद॒ उपाय प्रिय तोहि दाता , जो जन करता सुख सो पाता।
विधिवत मन से कीजे पूजन , सफल सत्य से होये जीवन।
शनिसंकीर्तन शनि मन रज्जन , भक्तिशनी नर हित भव भज्जन।
विधि प्रेम से मंगल गावें , शनि चरणन में शीश नवावें।
तापर शनि प्रसन्न हो जावें , मोक्ष राह पर पैर रखावें।
ग्रहहाजा महाबल पिंगला , सेवित सदा हरि संग कमला।
मंदचारी भूतात्म कृष्णा, शांति दें भक्तन मृग तृष्णा।
नन्हे जीवों के रखवारे , सबकी जीवन रेख सम्भारे।
जलचर नभच्र नाना भूचर , सबका भार प्राणमय तुम पर।
जिन तज माया मोह पसारा , तिन तन कष्ट किया निस्तारा।
दुःखहन्ते दुःस्वपन नाशक , प्रिय शनी सब मंत्र उपासक।
कृष्णा गर्ऊँ प्रिय शनि देवा , कोकिल वन में करते सेवा।
तिल तेल अरू शनि अमावस , नाम प्रिय अति हैं शनि को दस।
शनी ग्रह के तुम हो स्वामी , जय शनिदेवा अन्तरयामी।
पावें कृपा सुमार्ग गामी , पार उतारे कलि के कामी।

दोहा-
भव भय हरणी बीच जग , शनि भक्ति को जान।
मिटे भ्रम अज्ञान का, मिलता मुक्ति ज्ञान।
दृष्टि जो देखें शनी,गावें श्रुति का गान।
दीन बन्धु शनिदेव जी, कर देते कल्याण॥

सर्वारिष्ट प्रभु शनि भगाओ , भक्त सखे सब पीर नसाओ।
शुभकर्मी शनि नाम सहाई , दुष्कर्मी दें खाक मिलाई।
मिटे सकल संकट भव पीरा , निर्मल नित्य रहे शरीरा।
कोटिक जन्म पाप के नाशक , “मनु' जीवन के गुण प्रकाशक।
अभीष्ट फल दे अतिसुखकारी , अभय करे सर्वानन्द धारी।
अन्नदाता अविगत अविकारी , अतुल अमोधघ अनन्त उदारी।
बहु पतित कलि माँही उबारे , करूणा कीन्हीं विरद्विचारें।
छल पाखण्ड द्वेष सबत्यागो , शनि नाम सुमिरण में लागो।
दिन दिन नर यह छीजत काया , विषय वासना मन भरमाया।
दानव काल बड़ा बलकारी , शनि गुण गा छूटे नर नारी।
शनि कृपा पावे जो कोई , रोग शोक ना ताको होई।
नर सुर असुर किन्नर विद्याधर , करें प्रभावित सब राशि घर।
ऋग्वेद ब्रह्माण्ड पुराणा , नाम महिमा करें बखाना।
कश्यप वंश की शोभा बढ़ाई , सूर्य कीरति नेक निभाई।
मंद शांत विधि रूप तुम्हारा , भक्तन देवें बेगि उबारा।
किरपा वृष्टि सदा बरसाओ , भूल पाप सारे बिसराओ।

दोहा-
लगन लगी शनिदेव से, मिटे. द्वैत अज्ञान।
अभय रहे जीवन सदा , मूरख बीच सुजान॥
करिये शनि संकीर्तन, पाइये कृपा खास।
स्वाति बूँद चातक लिये, मिट जाती है प्यास॥

अति क्रूर हों करे उत्पाता , दे बहु कष्ट और संतापा।
सर्व पीड़ा मृत्यु के कारक , निंदक कपटी छली सुधारक।
बैरी विरोधि अमंगलकारी , भूत प्रेत सर्पादिक भारी।
दुष्ट अरू हिंसक जीवादी , बच न पाए कोई अपराधी।
संकट दुख भंजन भगवाना , हूँ शरणागत कर कल्याणा।
सुख दुख द्वन्द क्लेश नसाओ , सब कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
क्रोध दृष्टि न झेलूँ तुम्हारी , दारूण दुख शनि सहूँ न भारी।
मैं मूर्ख शनि निपट अनारी , करूँ प्रार्थना मति अनुसारी।
क्या गुण शनि तुम्हारे गाऊँ , अल्पमति मैं अज्ञ कहाऊँ।
काम क्रोध मद लोभ अनेका , मिटा समूल दीजौ विवेका।
छाया सुत यम यमुना भ्राता, 'मनु' जतन से तुमको पाता।
रघुवंशी सम शनि आरशाध्य , भए गम्भीर धीर अति साध्य।
कुरूवंश पूजे तुमकों विधिवत , माने कलि जन करे नमन शत।
सकल जन्म के पापनिवारे , पावन नाम शनि का प्यारे।
राम से वर द्वापर में पाए, पूजित राम सम शनि कहलाए।
हों प्रसन्‍नन परशुराम दीन्हें वर , पूजें कलि जन मुझसे बढ़कर।

दोहा-
न्यायधीश बडे सख्त शनि , भगतन को सुखकार।
ज्यों गन्‍ने की डाँड है, पौर पौर रसदार।
सकल जगत जाति सभी , जानो शनि प्रभाव।
बिन शनि पूजन के रहे , सुख सम्पत्ति अभाव।॥।

सुलक्षण सती पतिग्रत नारी , पावें शनि से पदार्थ चारी।
जिन पशुओं सम उम्र गुजारी , दे शनि कष्ट उसे अति भारी।
भूमि रत्न शनि को प्यारे , खान खदान खाद्यन्न सारे।
लौह सिंहासन अति ही भाए , प्रथम पूजें जन मान बढ़ाए।
तिल अन्न दान तिल जो करते , शनि संतुष्ट हो संकट हरते।
पीर तेल तिल दीपक हरता , तुष्टि शनी सम्मुख जब जरता।
ओमकार भज शिव को ध्यावे , शनि प्रसन्‍नता नर वह पावे।
मूर्ति मंदिर शनि प्रकाशा , पीपल ऊपर करें निवासा।
'मनु' मन चक्षु भए विवेकी , अलोकिक छवि शनि सूक्ष्म देखी।
कृपावंत कीरति निरंतर , कलि माँही फैलेगी घर-घर।
जो जन करे नित शनि आरती , सकल विपद को तुरत टारती।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई , शनि संकट ते तारे सोई।
तुम्हती महिमा सब दिशि छाइ , नाम कीरतन सबे सुखदाइ।
ग्रंथ पंथ शनि कीर्ति बखानी , तुम सम कोइ दयालु न दानी।
पूजन विधि जन नाहीं आवे , विनय कर सन्मुख शीश नवावें।
हरो विघ्न मंगल शनि कर दो , भक्तों के भण्डारे भर दो।

दोहा-
करते मंगल कामना, साधक तेरे द्वार।
भर झोली ले जाते हैं, मिलकर के नर नार।।
दास भावना मन रखे, सेव करे दिन रात।
सब साधन जग में मिले, मिले शनी का साथ॥।

तिल उड़द लौह तेल चढ़ाऊँ , मन रंजन गाथा तब गाऊँ।
बुद्धि मन प्राणों से सेवा , करू सदैव नियम से देवा।
जोरी जुगल कर शनि मनाऊँ , विकरम सम किरपा पा जाऊँ।
हो अति प्रसन्‍न कष्ट मिटाओ , किरपा भक्तों पर बरसाओ।
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे , पूरण करते कारज सारे।
कलि मल हरण नाम शनि पावन , दीनदयाल भक्त मन भावन।
पतित शरण हों पावे मुक्‍ती , कलि में श्रेष्ठ शनि की भगती।
जो जन शरण तुम्हारी आवे , धन वैभव यश तुमसे पावे।
जो शनि गान मनोहर गावे , उत्थित ब्रह्मानाद हो जावे।
जो नर मान ईष्ट शनि ध्यावे , तिस के काज सफल हो जावे।
जन कल्याण जो रहते तत्पर , शनिदेव प्रसन्‍न हो उसपर।
जो जन शनि का नाम बिसारे ,सो जीवन ना कोइक्‍़ उबारे।
दान करे जो वस्तु अनेका , दो धन वैभव न्याय विवेका।
शनि यमराज दोउ दंडधारी , सब दुष्टों की तुरत मति मारी।
सखा भैरव हनुमत बुध राहु , हठी त्यागी गम्भीर सुभाउ।
आनन तेज अमित बरसावे , कोटि काम तुमसे डरपावे।

दोहा-
शनि देव दरबार से, खाली जाय न कोय।
झोली भर दें सुख सभी , जो भगतन के होय।
शनि की कृपा का कभी , नहीं होता है अंत।
भजन करो शनिदेव का, मिल नर नारी संत॥

गज वाहन शनि बैठि के आवे , अन धन साधन घर भरि जावे।
आवें शनि बैठि के जम्बुक , बुद्धि नष्ट हो मिट जावे सुख।
मृग ऊपर शनि देवा आवे , कष्ट प्राण संहार बढ़ावे।
आवे जब शनि बैठि स्वान पर , संभव चोरी होने का डर।
बैठि ऊपर गर्दभ के आवै , चहूँ और से हानि करावै।
सिंह बैठि आवबे शनि देवा , बन अधिकारी भोगे सेवा।
काक वाहन शनि बैठि आवे , भकतन सुख दे काज बनावे।
गिद्ध भेंसा पे आवे जबहि , सफल मनोरथ होवे तबहि।
तेसे चारि चरण शनि आये , ताम्र रजत लोह स्वर्ण बताये।
लोह चरण पर जब पग राखे , साधन मिटे पड़े फिर फॉके।
ताम्र रजत पर अति शुभकारी , स्वर्ण आवें हों मंगल भारी।
मन्दिर जो शनिदेव बनायें , सब सुख जीवन तुमते पायें।
करे शनि के वार उपवासा , पूरण करते मन की आशा।
शनिवार जप करे गिन स्वाँसा , स्वर्ग लोक में पावें वासा।
तेल उड़द गुड़ कपड़ा काला , आक शमी पुष्प चढ़तनिराला।
शनिवार जो अमावश होये , सब जन तेल चढ़ावे तोये।

दोहा-
रखे टेक शनिदेव जी , तारा भव से पार।
चौरासी के फेर से,कर देवे उद्धार॥
कर्म किए जाए. मना, सकल ग्रह फल देत।
शुभ कर्मी सुख पावे हैं, शनि पूजन से चेत॥

नजर पड़े पशु पंछी मानव , महाभयंकर देव व दानव।
दृष्टि से हो जाये दीना , नष्ट नगर राष्ट्‌ भी कीन्हा।
दृष्टि शनि की अति विकराला , रवि पर टिकी कृष्ठ कर डाला।
सूर्य सारथि पंगु कर डाला , अंध अश्व दूग गया उजाला।
मस्तक शिवा सुवन का छेदा , शनि दृष्टि से होये विच्छेदा।
बृत्संहिता में सविस्तारा , शकट रोहिणी भेदन भारा।
गुरू वशिष्ठ गर्भ में देखा, चिन्ता दशरथ मस्तक रेखा।
आये बारह वर्ष अकाला , छाया संकट महा विशाला।
दिव्य रथ का किया आवाहन , ऊपर गये तीन लख योजन।
भास्कर मण्डल ऊपर जाकर , लगा तीर धनु डोर चढ़ाकर।
प्रतीक्षा शनिदेव की कीन्ही , शपथ अनोखी धार मन लीन्ही।
शनी सामने पा सकुचाये , वर देने को हस्त उठाये।
हो दशरथ साहस से प्रसन्‍न , किया अभय अकाल से जीवन।
नूप दशरथ शनि स्तुति कीन्ही , विपदा सकल शनि हर लीन्ही।
प्रजा रहने लगी सुखारी , टला रोहिणी भेदन भारी।
पुरवो आस सभी की देवा ,जन दर तेरे करते सेवा।

दोहा-
महिमा बड़ी शनिदेव की , सब सुख क्षण में देत।
रक्षक बन शनिदेव जी, संकट सब हर लेत।॥।
विनती जो शनि से करे , कातर सम सुग्रीव।
आँधी तूफाँ में कभी , उखड़॒ ना पावे नींव॥

हरिश्चन्द्र नृप. सत्य धारी , शनि दृष्टि ने किया दुखारी।
छीन लई सम्पत्ति सारी, बिछड़े हिय से बालक नारी।
रामचन्द्र राशी शनी आए , वर्ष चौदह बनवास दिलाए।
चले भार्या संग बन वासा , राजतिलक की छूटी आशा।
करते सुर नर मुनिजन वंदन , असुर निकंदन हे रवि नंदन।
भुगताया नल को राशि फल , शुद्धात्मा किया राजा नल।
स्नान शनि तीरथ नल कीन्हा , साम्राज्य पदवी शनि दीन्हा।
स्वपन में मंत्र दे नृप नलको , वर दे पुष्ट किया भुज बल को।
राशी पर सुग्रीव की आये , महाघोर अपमान कराये।
प्रिया विहीन हुए अपराधी , छीने सहोदर सुख भोगादि।
रावण राशी पर शनी आए , सभी देव संग युद्ध कराए।
ब्रह्म अस्त्र देवों पे चलाए , नवग्रह रावण बंदी बनाए।
सिंहासन संग बांध रखाए, श्री रघुबीर बजरंगी धाए।
हनुमत नवग्रह मुक्त कराये , शनी दृष्टि विकराल दिखाये।
स्वर्ण लंक को लाख बनाये , हनुमत रावण नगर जलाये।
बाद दशा अति आईं भारी , मिटा वंश बनी हेतू नारी।

दोहा-
शत तूणीर धार चले , शनिदेव महाकाल।
भकतन कृपा मिल गई, दुष्ट मरे तत्काल॥।
काम क्रोध मद लोभ का , घट में फैला जाल।
शनि दृष्टि से जन दुखी , हो जाते कंगाल॥

पीर सही पाण्डव ने भारी , बच्चि अपमानित होती नारी।
धर्माज नारद मुनि ध्याये , नारद शनि स्तवन बतलाये।
कीन्हा धर्मराज शनि ध्याना , रक्षा कीजे तनु अंग नाना।
सुर शशि मरूत घोर अकारा , मन्द जटाधर खज्ज कुमारा।
तीन ताप के हरने वाले , देव सिद्ध योगेश्वर काले।
ला चित्त चरणा सिमरूँ तोहे , पार उतारो भव से मोहे।
सुन स्तवन शनि प्रकटे सन्मुख , दीन्हा धर्माज को वर सुख।
हुआ युद्ध कालान्तरभारी , हार कौरव अत्याचारी।
धर्म स्थापना हु जग माहीं , प्रभु श्री भगवदगीता गाई।
राजा विकरम अति बलवन्ता , छलि कपटी के नाश करन्ता।
हुए राज्य जन अति ही सुखारी , छाया यश महि ऊपर भारी।
शनी दृष्टि ने किया दुखारी , अन्त माना शनि न्याय कारी।
अहम्‌ मिटाया नृप का सारा , सपन में दुख का किया निस्तारा।
पूड़ी सब्जी किया भण्डारा , हलवा चना बनाया प्यारा।
प्रथम भोग शनि को खिलाये , पाछे ब्राह्मण सात जिमाये।
भूखों का फिर पेट भराये , सब सुख सम्पत्ति शनि से पाये।

दोहा-
शनि से मन भय उपजे , सुन॒ प्राणी नादान।
शनी देव दाता करें, करमन फल प्रदान॥
सब देवों में हैं बडे , कृष्ण वर्ण शनिराज।
जो नर ध्यावे नित्य ही, पूरण करते काज॥।

उद्भव लीला प्रसंग न्यारा , भया शनि महिमा काविस्तारा।
भ्रमवश शनि हनुमत ललकारा , एक अंश एक रूप अपारा।
श्री राम की करे सेवकाई , स्वयं रूद्र शिव ध्यान लगाई।
क्रोध वश॒ शनि मति भरमाई , बढ़ा अहं तन रहा अघाई।
समझ उन्हें साधारण वानर , गर्जे टूट पड़े शनि उन पर।
हुआ युद्ध बड़ा ही भारी , लड़कर हारे शनि बलकारी।
महावीर भए पर्वत कारी, क्षण में पूछ बढ़ाई भारी।
पाश बनाय शनी लिपटायें , परवत परिक्रमा को धाये।
पत्थर पत्थर शनि टकराये , घाव बदन पर शनि के आये।
तब शनि ने कपि को पहिचाना , अवतारी महिमा को जाना।
मन ही मन फिर किया प्रणामा , टूट अहं धार हिय नामा।
फिर शनि देव गुहार लगाई , हनुमत मति मेरी बौराई।
तुम प्रिय सखा आज से मोरे , भगतन नहीं सताऊँ तोरे।
हनुमत शनि को तेल लगाये , भगत तभी से तेल चढ़ाये।
तब शनि महिमा छाई भारी , शनिवार पूजे संसारी।
मंगल दिवस जो शनि पूजते , शनि विकट संकट सब हरते।

दोहा-
लीला श्री शनिदेव की , अद्भुत और विचित्र।
कलियुग में कल्याण करे , बनकर “मनु” के मित्र।।
मंगल जो शनि पूजते, धार हिय विश्वास।
शनी सकल भय हर करें , पूरणण मन की आश।॥।
शुभ कारज में शनी मनाओ , मंगल फल श्री शनि से पाओ।
ग्रह आरम्भ या ग्रह प्रवेशा , शनिवार कीजिये हमेशा।
मिले दान फल अतिशय भाई , मध्य पहर महिमा अधिकाई।
मन्दिर दर्शन पूजन अर्चन, बढ़े प्रताप होए शनि प्रसन्‍न।
साधु योगी या संसारी , पारा लगाए विरद संभारी।
सहस्र नाम जप सम सुखदाई , शनी किरपा दुर्लभ फलदाई।
पुत्र॒पौत्र परिवर्धन कारी , शत जप से मिलते फल चारी।
अमृत वाणी गावै जो कोइ , नित्य नेह शनी चरणन होइ।

छंद-
शनिदेव नर, हर पलसुमिर, कलिकाल बड़ दुखदाइ है।
मिटता अविद्या जाल जिन , शनि चरनन्हि लौ लाइ है।।
मंदिर शनि के जाय जो , शनि अमृत वाणी गावते।
हो पूर्ण 'मनु” मनकामना , अरू मुक्ति पद को पावतै॥

दोहा-
शनी चरण में राग हो , ताप मिटे फिर तीन।
अल्पमती मति पाइ के , बरनौ कीर्ति नवीन॥

छूट है कर्म की, किए जा तू मन से।
शुभ और अशुभ का ध्यान जरूरी है।
फल किए कर्मों का शनि ग्रह भुगतावें।
जाको जैसा कर्म की भावना भी पूरी है।
होवें अनुकूल शुभ कर्मी के शनिदेव।
साढ़ेसाती ढेय्या से राखी वाकी दूरी है।
संकट कटे दुख विपत्ति से दूर होवे।
मनु! परमार्थी पगडंडी नूरी है॥

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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