Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


|| श्री क्षेत्रपाल चालीसा||



।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

।। दोहा ।।
भोलेनाथ को सुमरि मन। धर गणेश को ध्यान ।
श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढू । कृपा करहूँ भगवान ।।
क्षेत्रपाल भैरव भजू। श्री काली के लाल ।
मुझ दास पर कृपा करो । मेरे बाबा क्षेत्रपाल ।।

।। चौपाइ ।।
जय जय श्री भैरव मतवाला । रहो दास पर सदा दयाला ।।
भैरव भीषण भीम कपाली । क्रोधवंत लोचन में लाली ।।

कर त्रिशूल है कठिन कराला । गल में प्रभु मुंडन की माला ।।
कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला । पीकर मद रहता मतवाला ।।

क्षेत्रपाल भक्तन के संगी । प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी ।।
श्री क्षेत्रपाल है नाम तुम्हारा । चक्रदंड अमरेश पियारा ।।

शेखर चन्द्र कपाल विराजे । स्वान सवारी पै प्रभू राजे ।।
शिव नकुलेश चंड हो स्वामी । बैजनाथ प्रभु नमो नमामी ।।

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने । भैरव काल जगत में जाने ।।
गायत्री कहे निमिष दिगंबर । जगन्नाथ उन्नत आडम्बर ।।

क्षेत्रपाल दशपाणी कहाए । मंजुल उमानंद कहलाये ।।
चक्रनाथ भक्तन हितकारी । कहे त्रयम्बकं सब नर नारी ।।

संहारक सुनन्द सब नामा । करहु भक्त के पूरण कमा ।।
क्षेत्रपाल शमशान के वासी । व्यालपवित हाथ यम फाँसी ।।

कृत्यायु सुन्दर आनंदा । भक्तन जन के काटहु फन्दा ।।
कारण लम्ब आप भय भंजन । नमो नाथ जय जनमन रंजन ।।

हो तुम मेष त्रिलोचन नाथा । भक्त चरण में नावत माथा ।।
तुम असितांग रूद्र के लाला । महाकाल कालो के काला ।।

ताप विमोचन अरिदल नासा । भाल चन्द्रमा करहि प्रकाशा ।।
श्वेत काल अरु लाल शरीरा । मस्तक मुकुट शीश पर चीरा ।।

काली के लाला बलधारी । कहं लगी शोभा कहहु तुम्हारी ।।
शंकर के अवतार कृपाला । रहो चकाचक पी मद प्याला ।।

काशी के कुतवाल कहाओ । क्षेत्रपाल चेटक दिखलाओ ।।
रवि के दिन जन भोग लगावे । धुप दीप नवेद चढ़ावे ।।

दर्शन कर के भक्त सिहावे । तब शुरा की धार पियावे ।।
मठ में सुन्दर लटकत झाबा । सिद्ध काज करो भैरव बाबा ।।

नाथ आप का यश नहीं थोडा । कर में शुभग शुशोभित कोड़ा ।।
कटि घुंघरा सुरीले बाजत । कंचन के सिंघासन राजत ।।

नर नारी सब तुमको ध्यावे । मन वांछित इच्छा फल पावे ।।
भोपा है आप के पुजारी । करे आरती सेवा भारी ।।

बाबा भात आप का गाऊं । बार बार पद शीश नवाऊ ।।
ऐलादी को दुःख निवारयौ । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।

जो नर(नारी) मन से ध्यान लगावे ।दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे ।।
लूले लँगड़े पैर चलावे । नेत्रहीन ज्योति को पावे ।।

नीसंतान संतान को पावे । जात जडूला कर भोग लगावे ।।
कौड़ी नर भी काया पावे । वाय। मिर्गी जड़ से मिटावे ।।

काया के सव रोग मिटावे । धाम डाबरा जो कोई आवे ।।
भूत , जिन्न तो यूही भग जावे । सांकड़ की जब मार लगावे ।।

दृढ़ विशवास कर क्षेत्रपाल के आवे ।मृत प्राणी भी जीवित हो जावे ।।
तुमरो दास जहाँ भी होई । ता पर संकट परे न कोई ।।

तुम बिन अव ना कोई मेरो । संकट हरण हरउ दुःख मेरो ।।

।। दोहा ।।
जय जय श्री भैरव मतवाडा। स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये शंकर के अवतार ।।
श्री क्षेत्रपाल चालीसा पढे । प्रेम सहित शतवार ।
उस घर सर्वानन्द हो । वैभव बढे अपार ।।

इति श्री क्षेत्रपाल चालीसा।

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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