Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


|| श्री चित्रगुप्त चालीसा ||



।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

।। दोहा ।।
सुमिर चित्रगुप्त ईश को । सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह । रिनिहा भए जगदीश ।।
करो कृपा करिवर वदन । जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश । वंदन गुरूपद लाय ।।

।। चौपाई ।।
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर । जय यमेश दिगंत उजागर ।।
अज सहाय अवतरेउ गुसांई । कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई ।।

श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा । भांति-भांति के जीवन राचा ।।
अज की रचना मानव संदर । मानव मति अज होइ निरूत्तर ।।

भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई । धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई ।।
राचेउ धरम धरम जग मांही । धर्म अवतार लेत तुम पांही ।।

अहम विवेकइ तुमहि विधाता । निज सत्ता पा करहिं कुघाता ।।
श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी । त्रय देवन कर शक्ति समानी ।।

पाप मृत्यु जग में तुम लाए । भयका भूत सकल जग छाए ।।
महाकाल के तुम हो साक्षी । ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी ।।

धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो । कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो ।।
राम धर्म हित जग पगु धारे । मानवगुण सदगुण अति प्यारे ।।

विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें । पालन धर्म करम शुचि साजे ।।
महादेव के तुम त्रय लोचन । प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन ।।

सावित्री पर कृपा निराली । विद्यानिधि माँ सब जग आली ।।
रमा भाल पर कर अति दाया । श्रीनिधि अगम अकूत अगाया ।।

ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो । जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो ।।
गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा । जाके कर्म गहइ तव हाथा ।।

रावण कंस सकल मतवारे । तव प्रताप सब सरग सिधारे ।।
प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा । सोउ करत तुम्हारी सेवा ।।

रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी । विघ्न हरण शुभ काज संवारी ।।
व्यास चहइ रच वेद पुराना । गणपति लिपिबध हितमन ठाना ।।

पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा । असवर देय जगत कृत कीन्हा ।।
लेखनि मसि सह कागद कोरा । तव प्रताप अजु जगत मझोरा ।।

विद्या विनय पराक्रम भारी । तुम आधार जगत आभारी ।।
द्वादस पूत जगत अस लाए । राशी चक्र आधार सुहाए ।।

जस पूता तस राशि रचाना । ज्योतिष केतुम जनक महाना ।।
तिथी लगन होरा दिग्दर्शन । चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन ।।

राशी नखत जो जातक धारे । धरम करम फल तुमहि अधारे।।
राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई । प्रथम गुरू महिमा गुण गाई ।।

श्री गणेश तव बंदन कीना । कर्म अकर्म तुमहि आधीना ।।
देववृत जप तप वृत कीन्हा । इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा ।।

धर्महीन सौदास कुराजा । तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा ।।
हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा । कायथ परिजन परम पितामा ।।

शुर शुयशमा बन जामाता । क्षत्रिय विप्र सकल आदाता ।।
जय जय चित्रगुप्त गुसांई । गुरूवर गुरू पद पाय सहाई ।।

जो शत पाठ करइ चालीसा । जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा ।।
विनय करैं कुलदीप शुवेशा । राख पिता सम नेह हमेशा ।।

।। दोहा ।।
ज्ञान कलम । मसि सरस्वती । अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका । सदा रखे दंडास्त्र।।
पाप पुन्य लेखा करन । धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा । सरग नरक कर भूप।।

।। इति श्री चित्रगुप्त चालीसा ।।

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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