Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


||श्री महालक्ष्मी चालीसा ||



।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

॥ दोहा ॥
जय जय श्री महालक्ष्मी करूँ माता तव ध्यान।
सिद्ध काज मम किजिये निज शिशु सेवक जान ॥

॥ चौपाई ॥
नमो महा लक्ष्मी जय माता । तेरो नाम जगत विख्याता।
आदि शक्ति हो माता भवानी । पूजत सब नर मुनि ज्ञानी॥

जगत पालिनी सब सुख करनी । निज जनहित भण्डारण भरनी।
श्वेत कमल दल पर तव आसन । मात सुशोभित है पद्मासन॥

श्वेताम्बर अरू श्वेता भूषण । श्वेतही श्वेत सुसज्जित पुष्पन।
शीश छत्र अति रूप विशाला । गल सोहे मुक्तन की माला॥

सुंदर सोहे कुंचित केशा । विमल नयन अरु अनुपम भेषा।
कमल नयन समभुज तवचारि । सुरनर मुनिजनहित सुखकारी॥

अद्भूत छटा मात तव बानी । सकल विश्व की हो सुखखानी।
शांतिस्वभाव मृदुलतव भवानी । सकल विश्व की हो सुखखानी॥

महालक्ष्मी धन्य हो माई । पंच तत्व में सृष्टि रचाई।
जीव चराचर तुम उपजाये । पशु पक्षी नर नारी बनाये॥

क्षितितल अगणित वृक्ष जमाए । अमित रंग फल फूल सुहाए।
छवि विलोक सुरमुनि नर नारी । करे सदा तव जय जय कारी॥

सुरपति और नरपत सब ध्यावें । तेरे सम्मुख शीश नवावै ।
चारहु वेदन तब यश गाये । महिमा अगम पार नहीं पाया ॥

जापर करहु मात तुम दाया । सोइ जग में धन्य कहाया।
पल में राजाहि रंक बनाओ । रंक राव कर बिमल न लाओ॥

जिन घर करहुं मात तुम बासा । उनका यश हो विश्व प्रकाशा।
जो ध्यावै से बहु सुख पावै । विमुख रहे जो दुख उठावै॥

महालक्ष्मी जन सुख दाई । ध्याऊं तुमको शीश नवाई।
निज जन जानी मोहीं अपनाओ । सुख संपत्ति दे दुख नशाओ॥

ॐ श्री श्री जयसुखकी खानी । रिद्धि सिद्धि देउ मात जनजानी।
ॐ ह्रीं- ॐ ह्रीं सब व्याधिहटाओ । जनउर विमल दृष्टिदर्शाओ॥

ॐ क्लीं- ॐ क्लीं शत्रुन क्षय कीजै । जनहीत मात अभय वर दीजै।
ॐ जयजयति जय जयजननी । सकल काज भक्तन के सरनी॥

ॐ नमो-नमो भवनिधि तारणी । तरणि भंवर से पार उतारिनी।
सुनहु मात यह विनय हमारी । पुरवहु आस करहु अबारी॥

ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै । सो प्राणी सुख संपत्ति पावै।
रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई । ताकि निर्मल काया होई॥

विष्णु प्रिया जय जय महारानी । महिमा अमित ना जाय बखानी।
पुत्रहीन जो ध्यान लगावै । पाये सुत अतिहि हुलसावै॥

त्राहि त्राहि शरणागत तेरी । करहु मात अब नेक न देरी।
आवहु मात विलंब ना कीजै । हृदय निवास भक्त बर दीजै॥

जानूं जप तप का नहीं भेवा । पार करो अब भवनिधि वन खेवा।
विनवों बार बार कर जोरी । पुरण आशा करहु अब मेरी ।
जानी दास मम संकट टारौ । सकल व्याधि से मोहिं उबारो ।
जो तव सुरति रहै लव लाई । सो जग पावै सुयश बढ़ाई॥

छायो यश तेरा संसारा । पावत शेष शम्भु नहिं पारा ।
कमल निशदिन शरण तिहारि । करहु पूरण अभिलाष हमारी॥

॥ दोहा ॥
महालक्ष्मी चालीसा पढ़ै सुने चित्त लाय ।
ताहि पदारथ मिलै अब कहै वेद यश गाय॥

॥ इति श्री महालक्ष्मी चालीसा ॥

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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