।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।
॥ दोहा ॥
गणपति गिरजा पुत्र को । सुमिरूँ बारम्बार ।
हाथ जोड़ बिनती करूँ । शारद नाम आधार ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय गोरख नाथ अविनासी । कृपा करो गुरु देव प्रकाशी ॥१॥
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी । इच्छा रुप योगी वरदानी ॥२॥
अलख निरंजन तुम्हरो नामा । सदा करो भक्तन हित कामा ॥३॥
नाम तुम्हारा जो कोई गावे । जन्म जन्म के दुःख मिट जावे ॥४॥
जो कोई गोरख नाम सुनावे । भूत पिसाच निकट नहीं आवे ॥५॥
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे । रुप तुम्हारा लख्या न जावे ॥६॥
निराकर तुम हो निर्वाणी । महिमा तुम्हारी वेद न जानी ॥७॥
घट घट के तुम अन्तर्यामी । सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥८॥
भस्म अंग गल नाद विराजे । जटा शीश अति सुन्दर साजे ॥९॥
तुम बिन देव और नहीं दूजा । देव मुनि जन करते पूजा ॥१०॥
चिदानन्द सन्तन हितकारी । मंगल करुण अमंगल हारी ॥११॥
पूर्ण ब्रह्म सकल घट वासी । गोरख नाथ सकल प्रकाशी ॥१२॥
गोरख गोरख जो कोई ध्यावे । ब्रह्म रुप के दर्शन पावे ॥१३॥
शंकर रुप धर डमरु बाजे । कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥१४॥
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा । असुर मार भक्तन रखवारा ॥१५॥
अति विशाल है रुप तुम्हारा । सुर नर मुनि पावै न पारा ॥१६॥
दीन बन्धु दीनन हितकारी । हरो पाप हम शरण तुम्हारी ॥१७॥
योग युक्ति में हो प्रकाशा । सदा करो संतन तन वासा ॥१८॥
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा । सिद्धि बढ़ै अरु योग प्रचारा ॥१९॥
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले । मार मार वैरी के कीले ॥२०॥
चल चल चल गोरख विकराला । दुश्मन मार करो बेहाला ॥२१॥
जय जय जय गोरख अविनासी । अपने जन की हरो चौरासी॥२२॥
अचल अगम है गोरख योगी । सिद्धि देवो हरो रस भोगी ॥२३॥
काटो मार्ग यम को तुम आई । तुम बिन मेरा कौन सहाई ॥२४॥
अजर-अमर है तुम्हारी देहा । सनकादिक सब जोरहिं नेहा ॥२५॥
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा । है प्रसिद्ध जगत उजियारा ॥२६॥
योगी लखे तुम्हारी माया । पार ब्रह्मा से ध्यान लगाया ॥२७॥
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे । अष्टसिद्धि नव निधि घर पावे ॥२८॥
शिव गोरख है नाम तुम्हारा । पापी दुष्ट अधम को तारा ॥२९॥
अगम अगोचर निर्भय नाथा । सदा रहो सन्तन के साथा ॥३०॥
शंकर रूप अवतार तुम्हारा । गोपीचन्द्र भरथरी को तारा ॥३१॥
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी । कृपासिन्धु योगी ब्रह्मचारी ॥३२॥
पूर्ण आस दास की कीजे । सेवक जान ज्ञान को दीजे ॥३३॥
पतित पावन अधम अधारा । तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥३४॥
अलख निरंजन नाम तुम्हारा । अगम पन्थ जिन योग प्रचारा ॥३५॥
जय जय जय गोरख भगवाना । सदा करो भक्तन कल्याना ॥३६॥
जय जय जय गोरख अविनासी । सेवा करै सिद्ध चौरासी ॥३७॥
जो ये पढ़हि गोरख चालीसा । होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ॥३८॥
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे । और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ॥३९॥
बारह पाठ पढ़ै नित जोई । मनोकामना पूर्ण होइ ॥४०॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम वश । पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना । पूरे गोरखनाथ ॥
अगम अगोचर नाथ तुम । पारब्रह्म अवतार ।
कानन कुण्डल सिर जटा । अंग विभूति अपार ॥
सिद्ध पुरुष योगेश्वरो । दो मुझको उपदेश ।
हर समय सेवा करुँ । सुबह शाम आदेश ॥
॥ इति श्री गोरखनाथ चालीसा ॥
॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||