Shree Swami Samarth Nam:

|| श्री स्वामी समर्थ ||


||श्री विष्णु चालीसा ||


।श्री गणेशाय नमः।
श्री स्वामी सामर्थाय नमः ।

दोहा।।
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

।।चौपाई।।
नमो विष्णु भगवान खरारी।कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत।सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत।बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे।देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण।कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण।केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा।रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया।हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया।असुरन को छबि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया।कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया।उसही कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई।शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई।कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी।वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे।बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे।कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चहत आपका सेवक दर्शन।करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण।विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन।कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई । हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई।निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ।भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ।निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै।पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

।। दोहा ।।
ॐ जय जगदीश हरे। स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनो के संकट क्षण में दूर करे।

।।इति श्री विष्णु चालीसा।

॥ श्रीगुरुदत्तात्रेयार्पणमस्तु ॥
|| श्री स्वामी समर्थापर्ण मस्तु||


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